संघवाद (Federalism) – विस्तृत अध्ययन मॉड्यूल | Class 10 Civics
कक्षा 10 – राजनीति विज्ञान (Civics)

संघवाद Federalism

लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी का ऊर्ध्वाधर (Vertical) स्वरूप। भारत की संघीय व्यवस्था, विकेंद्रीकरण और भाषाई विविधता का विस्तृत अध्ययन।

संघवाद क्या है?

संघीय शासन व्यवस्था (Federalism) लोकतांत्रिक शासन का वह रूप है जिसमें सत्ता को एक केंद्रीय प्राधिकार (Central Authority) और देश की विभिन्न आनुषंगिक इकाइयों (Constituent Units) के बीच बाँट दिया जाता है। यह सत्ता की साझेदारी का ‘ऊर्ध्वाधर’ (Vertical) रूप है।

1. पूरे देश की सरकार

यह सरकार राष्ट्रीय महत्व के विषयों (जैसे रक्षा, विदेश नीति) के लिए जिम्मेदार होती है।

2. राज्य/प्रांत की सरकार

यह राज्य के दैनंदिन कामकाज (Day-to-day administration) को देखती है।

“सत्ता के इन दोनों स्तर की सरकारें अपने-अपने स्तर पर स्वतंत्र होकर अपना काम करती हैं और एक-दूसरे के प्रति नहीं, बल्कि जनता के प्रति जवाबदेह होती हैं।”
अधिकार-क्षेत्र (Jurisdiction): ऐसा दायरा जिस पर किसी का वैधानिक अधिकार हो। यह दायरा भौगोलिक सीमा के अंतर्गत परिभाषित हो सकता है अथवा इसके अंतर्गत कुछ विषयों को भी रखा जा सकता है।
दुनिया के 193 देशों में से केवल 25 में संघीय व्यवस्था है, लेकिन इनमें दुनिया की 40% जनसंख्या रहती है.
उदाहरण: बेल्जियम (संघीय) vs श्रीलंका (एकात्मक)। श्रीलंका में अभी भी व्यावहारिक रूप से एकात्मक व्यवस्था है।

शासन व्यवस्थाओं की तुलना

संघीय शासन (Federal)

  • 1

    दो या अधिक स्तर: केंद्र और राज्य सरकारें साथ-साथ काम करती हैं।

  • 2

    स्वतंत्रता: राज्य सरकारों के पास अपनी शक्तियाँ होती हैं। वे केंद्र पर निर्भर नहीं होतीं।

  • 3

    आदेश नहीं: केंद्र सरकार राज्य सरकार को “कुछ खास करने” का आदेश नहीं दे सकती।

  • 4

    जवाबदेही: दोनों सरकारें अलग-अलग जनता के प्रति जवाबदेह होती हैं।

उदाहरण: भारत, बेल्जियम, USA

एकात्मक शासन (Unitary)

  • 1

    एक ही स्तर: शासन का एक ही स्तर होता है। बाकी इकाइयाँ उसके अधीन होती हैं।

  • 2

    अधीनता: प्रांतीय सरकारें केंद्र सरकार की ‘एजेंट’ या अधीनस्थ के रूप में कार्य करती हैं।

  • 3

    आदेश शक्ति: केंद्र सरकार प्रांतीय या स्थानीय सरकारों को आदेश दे सकती है।

उदाहरण: श्रीलंका, चीन, जापान

संघीय व्यवस्था की 7 मुख्य विशेषताएँ

1. सरकार के स्तर

यहाँ सरकार दो या अधिक स्तरों वाली होती है। आमतौर पर एक केंद्रीय सरकार (पूरे देश के लिए) और विभिन्न राज्य सरकारें (प्रांतों के लिए) होती हैं।

2. अलग-अलग अधिकार-क्षेत्र

अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं, पर कानून बनाने, कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार-क्षेत्र (Jurisdiction) होता है।

3. संवैधानिक गारंटी

विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार-क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं। इसलिए संविधान सरकार के हर स्तर के अस्तित्व और प्राधिकार की गारंटी और सुरक्षा देता है।

4. संविधान में बदलाव

संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती। ऐसे बदलाव दोनों स्तर की सरकारों की सहमति से ही हो सकते हैं।

5. न्यायालय की सर्वोच्चता

अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है। विभिन्न स्तर की सरकारों के बीच अधिकारों के विवाद की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय निर्णायक की भूमिका निभाता है।

6. वित्तीय स्वायत्तता

वित्तीय स्वायत्तता निश्चित करने के लिए विभिन्न स्तर की सरकारों के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत निर्धारित हैं।

7. दोहरे उद्देश्य

संघीय शासन व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य हैं:
1. देश की एकता की सुरक्षा करना और उसे बढ़ावा देना।
2. इसके साथ ही क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना।
(आदर्श संघीय व्यवस्था में ये दोनों पक्ष होते हैं: आपसी भरोसा और साथ रहने पर सहमति।)

संघ बनाने के दो तरीके

संघीय शासन व्यवस्थाएँ आमतौर पर दो अलग-अलग ऐतिहासिक संदर्भों में गठित होती हैं। संघ का निर्माण किस तरह हुआ, इस पर ही केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का संतुलन निर्भर करता है।

1. साथ आकर संघ बनाना

Coming Together Federation
प्रक्रिया

दो या अधिक स्वतंत्र राष्ट्र साथ आकर एक बड़ी इकाई गठित करते हैं।

उद्देश्य

अपनी संप्रभुता और अलग पहचान बनाए रखते हुए, अपनी सुरक्षा और खुशहाली को बढ़ाना।

शक्ति संतुलन

आमतौर पर प्रांतों को समान अधिकार होते हैं और वे केंद्र के मुकाबले ज्यादा या बराबर ताकतवर होते हैं।

उदाहरण:
USA स्विट्जरलैंड ऑस्ट्रेलिया

2. साथ लेकर संघ बनाना

Holding Together Federation
प्रक्रिया

एक बड़ा देश अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करता है और सत्ता का बँटवारा करता है।

उद्देश्य

देश की आंतरिक विविधताओं को समेटना और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना।

शक्ति संतुलन

इसमें केंद्र सरकार राज्यों के मुकाबले ज़्यादा ताकतवर हुआ करती है। अक्सर विभिन्न राज्यों को समान अधिकार नहीं मिलते (विशेष अधिकार दिए जाते हैं)।

उदाहरण:
भारत बेल्जियम स्पेन

भारत में संघीय व्यवस्था

संविधान ने भारत को ‘राज्यों का संघ’ घोषित किया है। इसमें तीन सूचियों के माध्यम से विधायी अधिकारों का स्पष्ट बँटवारा किया गया है।

1. संघ सूची (Union List)

राष्ट्रीय महत्व के विषय

  • प्रतिरक्षा (Defence)
  • विदेशी मामले
  • बैंकिंग
  • संचार
  • मुद्रा
सिर्फ केंद्र सरकार कानून बना सकती है।

2. राज्य सूची (State List)

प्रांतीय और स्थानीय महत्व

  • पुलिस
  • व्यापार, वाणिज्य
  • कृषि
  • सिंचाई
सिर्फ राज्य सरकार कानून बना सकती है।

3. समवर्ती सूची (Concurrent)

साझा दिलचस्पी के विषय

  • शिक्षा
  • वन
  • मज़दूर-संघ
  • विवाह
  • गोद लेना और उत्तराधिकार
दोनों सरकारें। टकराव पर केंद्र मान्य।

अवशिष्ट विषय (Residuary Subjects)

वे विषय जो तीनों सूचियों में नहीं आते (जैसे: कंप्यूटर सॉफ्टवेयर) क्योंकि ये संविधान बनने के बाद आए हैं।

अधिकार: केंद्र सरकार

विशेष दर्जा (Special Status)

कुछ राज्यों को अनुच्छेद 371 के तहत विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं (जैसे: असम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम)।

  • विशिष्ट सामाजिक तथा ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण।
  • स्वदेशी लोगों की संस्कृति और भूमि अधिकारों के संरक्षण के लिए।

केंद्र शासित प्रदेश (UTs)

ये वे छोटे इलाके हैं जो अपने आकार के चलते स्वतंत्र प्रांत नहीं बन सकते और न ही किसी मौजूदा प्रांत में विलीन हो सकते हैं।

  • उदा: चंडीगढ़, लक्षद्वीप, दिल्ली।
  • इनका शासन चलाने का विशेष अधिकार केंद्र सरकार को प्राप्त है।

संवैधानिक अनुसूचियाँ (Constitutional Schedules)

भारत में संघीय व्यवस्था को सुदृढ़ करने वाली प्रमुख अनुसूचियाँ:

7वीं अनुसूची (7th Schedule)

संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन (तीन सूचियों – संघ, राज्य, समवर्ती) का विवरण।

8वीं अनुसूची (8th Schedule)

भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं की सूची (हिन्दी, बंगाली, तेलुगु आदि)।

11वीं अनुसूची (11th Schedule)

पंचायती राज संस्थाओं (ग्रामीण स्थानीय शासन) के अधिकार और 29 विषय।

12वीं अनुसूची (12th Schedule)

नगर पालिकाओं (शहरी स्थानीय शासन) के अधिकार और 18 विषय।

संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया

केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता के बँटवारे में बदलाव करना आसान नहीं है।
1. संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से मंजूरी।
2. कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से मंजूरी।

न्यायपालिका की भूमिका

शक्तियों के बँटवारे के संबंध में कोई विवाद होने की हालत में फैसला उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में ही होता है।

संघीय व्यवस्था कैसे चलती है?

संघीय व्यवस्था के कारगर कामकाज के लिए संवैधानिक प्रावधान ज़रूरी हैं पर इतना ही पर्याप्त नहीं है। भारत में संघीय व्यवस्था की सफलता का मुख्य श्रेय यहाँ की लोकतांत्रिक राजनीति के चरित्र को देना होगा। इसी से संघवाद की भावना, विविधता का आदर और साथ रहने की इच्छा का आदर्श स्थापित हुआ।

1

भाषायी राज्य (Linguistic States)

1947 – 2019
Linguistic Map of India

भाषा के आधार पर प्रांतों का गठन हमारे देश की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए पहली और कठिन परीक्षा थी। 1947 से 2019 तक कई पुराने राज्यों की सीमाएँ, क्षेत्र और नाम बदले गए।

उद्देश्य

एक भाषा बोलने वाले लोग एक राज्य में आ जाएँ।

अन्य आधार

संस्कृति, भूगोल, जातीयता (Ethnicity)।
उदा: नगालैंड, उत्तराखंड, झारखंड।

परिणाम: शुरुआत में डर था कि देश टूट जाएगा, पर अनुभव बताता है कि इससे देश ज़्यादा एकीकृत और मज़बूत हुआ। प्रशासन भी सुविधाजनक हो गया।
2

भाषा-नीति (Language Policy)

  • कोई राष्ट्रभाषा नहीं: हमारे संविधान में किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा (National Language) का दर्जा नहीं दिया गया।
  • राजभाषा (Official Language): हिंदी को राजभाषा माना गया, पर यह सिर्फ 40% भारतीयों की मातृभाषा है।
  • अनुसूचित भाषाएँ: संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाओं (हिंदी सहित) को रखा गया है। केंद्र सरकार की परीक्षा किसी भी भाषा में दी जा सकती है।
अंग्रेजी का विवाद (1965)

संविधान के अनुसार 1965 में अंग्रेजी का प्रयोग बंद होना था। गैर-हिंदी भाषी राज्यों (जैसे तमिलनाडु) ने मांग की कि अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहे। केंद्र सरकार ने हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को राजकीय कामों में अनुमति देकर विवाद सुलझाया।

इस लचीले रुख ने भारत को श्रीलंका जैसी स्थिति (गृहयुद्ध) से बचा लिया।

3

केंद्र-राज्य संबंध (Centre-State Relations)

शुरुआती दौर (1990 से पहले)

केंद्र और राज्यों में एक ही पार्टी का शासन रहता था। राज्य सरकारें स्वायत्त इकाई के रूप में अधिकार प्रयोग नहीं कर पाती थीं। केंद्र सरकार अक्सर अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग कर विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को भंग कर देती थी।

1990 के बाद का दौर (गठबंधन युग)

देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों (Regional Parties) का उदय हुआ। केंद्र में किसी एक दल को बहुमत न मिलने पर गठबंधन सरकार (Coalition Government) का दौर शुरू हुआ।

नई संस्कृति: सत्ता में साझेदारी और राज्य सरकारों की स्वायत्तता का आदर।
सुप्रीम कोर्ट: फैसले से राज्य सरकार को मनमाने ढंग से भंग करना मुश्किल हो गया।

भारत में विकेंद्रीकरण

जब केंद्र और राज्य सरकार से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं. (तर्क: उत्तर प्रदेश रूस से बड़ा है, महाराष्ट्र जर्मनी के बराबर है।)

1992 के संवैधानिक संशोधन की उपलब्धियाँ

नियमित चुनाव संवैधानिक बाध्यता.
SC/ST/OBC के लिए आरक्षण.
महिलाओं के लिए 1/3 सीटें आरक्षित.
राज्य चुनाव आयोग का गठन.

ज़िला परिषद् (District Council)

जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर। (प्रमुख: राजनीतिक प्रधान)

सदस्य: सांसद (MPs), विधायक (MLAs), जिला अधिकारी

राजनीतिक प्रमुख: जिला प्रमुख | प्रशासनिक प्रमुख: मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO)

पंचायत समिति / प्रखंड (Block)

कई ग्राम पंचायतों को मिलाकर. सदस्य: पंचायत सदस्यों द्वारा निर्वाचित.

राजनीतिक प्रमुख: प्रधान | प्रशासनिक प्रमुख: खंड विकास अधिकारी (BDO)

ग्राम पंचायत

प्रत्येक गाँव में. मुखिया: प्रधान/सरपंच.

ग्राम सभा: गाँव के सभी मतदाता सदस्य होते हैं। यह पंचायत की निगरानी करती है.

राजनीतिक प्रमुख: सरपंच | प्रशासनिक प्रमुख: ग्राम सेवक / ग्राम विकास अधिकारी

चुनौतियाँ

  • ग्राम सभाओं की बैठकें नियमित नहीं होतीं।
  • अधिकांश राज्य सरकारों ने स्थानीय सरकारों को पर्याप्त अधिकार और वित्तीय संसाधन नहीं दिए हैं।

राजस्थान: पंचायती राज व शहरी शासन

लोकतंत्र को जन-जन तक पहुँचाने की दिशा में राजस्थान की पहल और स्थानीय स्वशासन का ढांचा।

संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions)

73वां संविधान संशोधन (पंचायती राज)
  • लागू: राजस्थान में यह 23 अप्रैल 1994 से प्रभावी हुआ।
  • अधिनियम: राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 के तहत व्यवस्था।
  • महिला आरक्षण: राजस्थान में महिलाओं के लिए 50% सीटें आरक्षित हैं।
  • संस्थाएं: स्वतंत्र निष्पक्ष चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission) और वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए राज्य वित्त आयोग (State Finance Commission) का गठन।
74वां संविधान संशोधन (शहरी निकाय)
  • संवैधानिक दर्जा: शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक सुरक्षा और मान्यता।
  • कार्यकाल: सभी निकायों का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित। भंग होने पर 6 महीने के भीतर चुनाव अनिवार्य।
  • वार्ड समितियां: 3 लाख से अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में वार्ड समितियों का गठन।

पंचायती राज व्यवस्था (त्रि-स्तरीय ढांचा)

तीनों स्तर और उनके प्रमुख
1. ग्राम स्तर

ग्राम पंचायत

राजनीतिक प्रमुख: सरपंच

प्रशासनिक प्रमुख: ग्राम विकास अधिकारी (VDO/Gram Sevak)

2. खंड स्तर

पंचायत समिति

राजनीतिक प्रमुख: प्रधान

प्रशासनिक प्रमुख: खंड विकास अधिकारी (BDO)

3. जिला स्तर

जिला परिषद

राजनीतिक प्रमुख: जिला प्रमुख

प्रशासनिक प्रमुख: मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO)

ग्राम सभा (Gram Sabha)

गाँव के सभी वयस्क मतदाता इसके सदस्य होते हैं। वर्ष में कम से कम 4 बैठकें (26 जनवरी, 1 मई, 15 अगस्त, 2 अक्टूबर) अनिवार्य हैं।

ग्राम सचिवालय (Gram Sachivalaya)

हर महीने की 5, 12, 20 और 27 तारीख को ग्राम पंचायत स्तर पर गिरदावर, ग्राम सेवक और कृषि पर्यवेक्षक उपस्थित रहते हैं ताकि ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान हो सके।

शहरी स्थानीय शासन (Urban Local Bodies)

74वें संविधान संशोधन के अनुरूप राजस्थान में भी शहरी निकायों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:

🏙️
नगर निगम (Municipal Corp)

बड़े शहरों (जैसे जयपुर, कोटा, जोधपुर) के लिए।
प्रमुख: महापौर (Mayor)

🏢
नगर परिषद (Municipal Council)

छोटे शहरों के लिए।
प्रमुख: सभापति (Chairperson)

🏘️
नगर पालिका (Municipality)

कस्बों (संक्रमणकालीन क्षेत्रों) के लिए।
प्रमुख: अध्यक्ष (Chairman)

वार्ड सभा (Ward Sabha)

शहरी क्षेत्रों में वार्ड स्तर पर जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वार्ड सभाओं का प्रावधान है, जहाँ स्थानीय मुद्दों पर चर्चा होती है।

ब्राजील का एक प्रयोग (Porto Alegre)

ब्राजील के शहर पोर्तो एलग्रे (Porto Alegre) ने विकेंद्रीकरण का अद्भुत प्रयोग किया। यहाँ के करीब 13 लाख लोग अपने शहर का बजट तैयार करने में भागीदारी करते हैं।

प्रक्रिया:

शहर को वार्डों में बाँटा गया। हर वार्ड की ग्राम-सभा जैसी बैठक होती है जहाँ नागरिक प्रस्ताव रखते हैं। एक समानांतर संगठन खड़ा किया गया।

फायदा:

बजट केवल अमीरों की बस्तियों पर खर्च नहीं होता। गरीब बस्तियों तक बसें जाती हैं और झुग्गी वालों को उजाड़ा नहीं जा सकता। करीब 20,000 लोग सालाना हिस्सा लेते हैं।

एनसीईआरटी (NCERT) पाठ्यक्रम पर आधारित विस्तृत अध्ययन सामग्री

© परीक्षा तैयारी मॉड्यूल | राजनीति विज्ञान कक्षा 10

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